
जमशेदपुर: साहित्यकार सुनील कुमार दे ने अपने आदर्श शिक्षक और साहित्यिक मार्गदर्शक डॉ. रामसेवक ‘विकल’ को याद करते हुए लिखा—
“गिरि भारती हाई स्कूल, हलुदपुखुर में 1971 में मेरी उनसे भेंट हुई. वे मेरे हिंदी-संस्कृत के शिक्षक थे, और वहीं से मेरी साहित्यिक यात्रा भी प्रारंभ हुई. बंगला में स्व. निरंजन मंडल और हिंदी में विकल जी मेरे प्रेरणास्रोत बने. वे केवल शिक्षक नहीं, मेरे साहित्यिक गुरु थे.”
इंटरमीडिएट की पढ़ाई के दौरान छोटानागपुर कॉलेज, हल्दिपोखर में जब विकल जी प्राचार्य थे, तब सुनील जी उनके प्रिय शिष्य रहे. “विकल जी घंटों भाषण देने में सक्षम थे. वे कविता तुरंत लिख सकते थे. उनका स्नेहपूर्ण व्यवहार मुझे जीवन भर स्मरण रहेगा”, उन्होंने भावुक होकर लिखा.

उत्तर प्रदेश से झारखंड तक की साहित्यिक यात्रा
डॉ. रामसेवक ‘विकल’ का जन्म 1 जुलाई 1939 को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के इसारी सलेमपुर गांव में हुआ. सतीश चंद्र कॉलेज, बलिया से स्नातक के बाद उन्होंने वकालत में दाखिला लिया, लेकिन पारिवारिक आर्थिक स्थिति के कारण उसे छोड़कर जमशेदपुर आ गए.
कुछ समय बाद उन्होंने गिरि भारती स्कूल, हल्दीपोखर में हिंदी शिक्षक के रूप में अपनी सेवा शुरू की. वहीं से उन्होंने एमए किया और बाद में “जयशंकर प्रसाद और द्विजेंद्रलाल राय के नाटकों का तुलनात्मक अध्ययन” विषय पर पीएचडी प्राप्त की.
बहुभाषी साहित्यकार और विविध विधाओं के साधक
विकल जी ने हिंदी, भोजपुरी, बांग्ला, उड़िया, संस्कृत और अंग्रेजी भाषाओं में लेखन किया. उन्होंने कविता, कहानी, नाटक, आलोचना, अनुवाद और लोकगीत जैसी विधाओं में भी कार्य किया.
उनकी प्रमुख रचनाओं में कर्मवीर, कमलाकांत, डूबे हुए भाई-बहन, जादूगर, सर्वोदय सुमन, आशा किरण, फूल और कलियां, मन पाखी, गीतांजलि (टैगोर की रचनाओं का पद्यानुवाद), उघटा पुरान और जीवन के पथ पाहुर शामिल हैं.
कमलाकांत नाटक में उन्होंने स्वयं मुख्य भूमिका निभाई थी. उन्होंने गिरि भारती में सुंदरम रंगमंच की स्थापना की और बाद में छोटानागपुर कॉलेज की भी नींव रखी.
भोजपुरी गीता: एक आध्यात्मिक अनुवाद
डॉ. विकल ने श्रीमद्भगवद्गीता का भोजपुरी पद्यानुवाद किया, जिसकी भूमिका स्वयं तत्कालीन शंकराचार्य ने लिखी थी. 2023 में इस रचना का दूसरा संस्करण उनके पुत्र डॉ. आदित्य कुमार ‘अंशु’ द्वारा प्रकाशित किया गया. उसी अवसर पर सुनील कुमार दे को डॉ. रामसेवक विकल स्मृति सम्मान से भी सम्मानित किया गया.
अप्रकाशित रचनाएं और साहित्यिक विरासत
उनकी कई रचनाएं अब भी अप्रकाशित हैं, जिनमें जगन्नाथ पुराण और पुराण पुरुष प्रमुख हैं. 2025 में उनके पौत्र द्वारा संपादित भोजपुरी लोकगीतों का संकलन आखर प्रकाशित हुआ. विकल जी की रचनाएं अब भी देश की प्रमुख पत्रिकाओं और काव्य संग्रहों में प्रकाशित होती रहती हैं.
सामाजिक प्रतिबद्धता और सांस्कृतिक सक्रियता
विकल जी साहित्यकार के साथ-साथ रंगमंच निर्देशक, अभिनेता और सामाजिक कार्यकर्ता भी थे. वे भूदान आंदोलन के दौरान विनोबा भावे से जुड़े रहे. उन्होंने अभिनय, निर्देशन और लेखन का त्रिवेणी संगम स्थापित किया.
साहित्य सेवा में संपूर्ण जीवन समर्पित
1999 में गिरि भारती से प्राचार्य पद से सेवानिवृत्त होने के बाद वे जमशेदपुर के बागबेड़ा में रहकर साहित्य सेवा में लगे रहे. फिर वे अपने गांव लौट आए और जगन्नाथ पुराण तथा पुराण पुरुष पर कार्य प्रारंभ किया, जो अधूरा ही रह गया. मधुमेह से पीड़ित विकल जी 11 नवम्बर 2002 को छठ पूजा के दिन अचानक इस दुनिया को अलविदा कह गए.
उनकी स्मृति को जीवित रखती संस्थाएं
आज उनके स्मरण में दो संस्थाएं—
- डॉ. रामसेवक विकल साहित्य कला संगम संस्थान एवं पुस्तकालय
- डॉ. रामसेवक विकल साहित्य सेवा ट्रस्ट
सक्रिय रूप से संचालित हैं. इनके माध्यम से हर वर्ष कवि सम्मेलन, गोष्ठी एवं विकल सम्मान और राष्ट्रीय कृति सम्मान जैसे पुरस्कार प्रदान किए जाते हैं. इन दोनों संस्थाओं का संचालन उनके पुत्र डॉ. अंशु कर रहे हैं.
शब्दों का योद्धा, जो कभी थका नहीं
डॉ. रामसेवक विकल न केवल शब्दों के साधक थे, बल्कि विचारों के योद्धा भी थे. शिक्षा, साहित्य और समाज तीनों में उनका योगदान आज भी प्रेरणास्रोत है. उनके शब्द, उनका स्वर, उनकी छवि – सब कुछ आने वाली पीढ़ियों के लिए अमूल्य धरोहर है.
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