
सरायकेला: गम्हरिया प्रखंड के गायत्री नगर में एक विधवा महिला को डायन बताकर सामाजिक बहिष्कार का सामना करना पड़ा. पीड़िता कौशल्या महतो का रास्ता पड़ोसियों द्वारा बंद कर दिया गया था. मीडिया में खबर प्रकाशित होने के बाद प्रशासन सक्रिय हुआ और सोमवार को विधवा महिला के आवेदन के आधार पर कार्रवाई की गई.
किसने की पहल, और क्यों?
इस मामले में डायन प्रताड़ना की शिकार रही एवं पद्मश्री सम्मान प्राप्त छुटनी महतो ने उपायुक्त और आदित्यपुर थाना में गुहार लगाई. उनकी पहल के बाद प्रशासन ने त्वरित कार्रवाई की. प्रशासनिक टीम लाव-लश्कर के साथ मौके पर पहुंची और पड़ोसी दिलीप घोष द्वारा खड़ी की गई बाउंड्री वॉल को तोड़कर रास्ता पुनः चालू कराया. रास्ता खुलते ही कौशल्या महतो के चेहरे पर संतोष स्पष्ट झलकने लगा. वर्षों से दबी आवाज़ को आखिरकार प्रशासन ने सुना. हालांकि अब सबकी नजर इस पर टिकी है कि पुलिस दिलीप घोष के विरुद्ध किस प्रकार की विधिक कार्रवाई करती है. क्या डायन कुप्रथा के खिलाफ बनी कानून को इस बार प्रभावी रूप से लागू किया जाएगा?
सामाजिक कुरीतियों पर प्रहार या प्रशासन की प्रतीकात्मकता?
यह घटना एक बार फिर यह सवाल उठाती है कि क्या समाज आज भी अंधविश्वास की गिरफ्त में है? और यदि हां, तो प्रशासन और समाज की साझी भूमिका किस हद तक इसे समाप्त कर सकती है?
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