
पोटका : एक समय था जब हर गांव में किसी अनुष्ठान पर बांग्ला नाटक या संथाली, भूमिज ड्रामा का आयोजन किया जाता था. जिससे समाज में एक महत्वपूर्ण संदेश दिया जाता था. मगर आज हर गांव में डीजे,बुगी-बुगी धूम मचा रखा है. जिससे गांव के युवक युवतियां अश्लील नृत्य पर उतारू होते जा रहे हैं, और हर गांव की पारंपरिक संस्कार विलुप्त होती जा रही है एवं युवा वर्ग संस्कार विहीन होकर भटकते हुए दिख रहें हैं.
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इस विकट परिस्थिति में लख्यी सरस्वती अपेरा बुरुडीह बांग्ला भाषा के मधुरता को कायम रखते हुए सामाजिक यात्रा “मां के रेखेछी मायने करें वोऊ के रेखेछी पाये धरे” का मंगलवार को मंचन कर समाज को संदेश दिया की मां-बाप बहुत कष्ट से एक संतान को मानव से मनुष्य बनता है. मगर वह जब शादी कर लेता है, तो ससुराल पक्ष के बातों को मानते हुए मां-बाप का पक्ष छोड़कर मां-बाप को वृद्धा आश्रम में भेज देने के बाद क्या परिणाम होता है यह सभी घटना नाटक के माध्यम से दर्शाया गया.
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नाटक में मुख्य भूमिका पर स्वपन कुमार मंडल, सरोजीत, शंकर ,तुषार ,धनंजय,जालोदार जयदेव ,दयाल, नारायण, स्वदेश देवाशीष ,लोकेश ,लक्ष्मी प्रिया मधुमति आदि रहे। डायरेक्टर गौर मिश्रा, नरेंन सरदार, उत्पल मंडल ,निरंजन मंडल ने भूमिका निभायी. कार्यक्रम में जिला परिषद सदस्य सूरज मंडल, पंचायत के मुखिया अभिषेक सरदार ,पूर्व पंचायत समिति सदस्य सनत कुमार सी, विधायक प्रतिनिधि मुकेश सीट समाजसेवी सनत मंडल, उज्जवल कुमार मंडल, विष्णु मंडल, कल्याण मंडल,संजीत मंडल,मंगल पान आदि उपस्थित थे.