- टिक्की मुखी अब तक किसी दल के प्रचार में नहीं दिखे सक्रिय, झामुमो और भाजपा दोनों खेमों में मची हलचल
- राजनीतिक समीकरण में टिक्की मुखी की भूमिका अहम — किस ओर झुकेगा कांग्रेस का झंडा?
घाटशिला : घाटशिला विधानसभा उपचुनाव का माहौल इस बार बेहद दिलचस्प होता जा रहा है। जादूगोड़ा के कांग्रेस नेता टिक्की मुखी के रुख को लेकर पूरे अनुमंडल की राजनीति में चर्चाओं का दौर तेज है। टिक्की मुखी का नाम क्षेत्र में दलित समाज और मजदूर वर्ग के बीच अत्यंत लोकप्रिय है। वे लंबे समय से समाज के कमजोर वर्गों के लिए कार्य करते आ रहे हैं और मजदूरों के अधिकारों की लड़ाई में अग्रणी रहे हैं। कोविड-19 काल के दौरान उन्होंने जरूरतमंदों के बीच खाद्यान्न, वस्त्र और राहत सामग्री का वितरण कर मानवता की मिसाल पेश की थी। उनके समाजसेवी कार्यों के कारण जनता में उनकी छवि एक संवेदनशील नेता की बनी हुई है।
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टिक्की मुखी की लोकप्रियता बनी चर्चा का केंद्र — जनता में बढ़ रहा प्रभाव, पार्टियों में मंथन तेज
टिक्की मुखी ने बीते वर्षों में डॉ. भीमराव अंबेडकर जयंती पर बच्चों के बीच शैक्षणिक सामग्री का वितरण और ठंड के मौसम में हजारों जरूरतमंदों को कंबल वितरण कर समाजसेवा को नई दिशा दी है। मगर इस बार के घाटशिला उपचुनाव में उनकी राजनीतिक सक्रियता नदारद दिख रही है। झामुमो के साझा प्रत्याशी सोमेश सोरेन के प्रचार अभियान में अब तक वे और जादूगोड़ा मंडल कांग्रेस के कार्यकर्ता सक्रिय रूप से नजर नहीं आ रहे हैं। इस स्थिति ने सियासी हलकों में कई सवाल खड़े कर दिए हैं कि आखिर टिक्की मुखी का रुख किस ओर है।
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कांग्रेस कार्यकर्ताओं की निष्क्रियता पर उठे सवाल — झामुमो खेमे में बढ़ी चिंता
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अगर टिक्की मुखी इस उपचुनाव में खुलकर झामुमो प्रत्याशी सोमेश सोरेन या भाजपा प्रत्याशी बाबूलाल सोरेन के पक्ष में रुख अपनाते हैं, तो यह चुनावी समीकरणों को पूरी तरह बदल सकता है। फिलहाल क्षेत्र में यह सबसे बड़ा सवाल बना हुआ है कि क्या टिक्की मुखी प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष प्रदीप बालमुचू की तरह खामोश रहेंगे या फिर चुनावी रुख स्पष्ट करेंगे। अब सबकी निगाहें उनके अगले कदम पर टिकी हैं, क्योंकि उनका समर्थन जिस ओर जाएगा, उस ओर मतदाताओं का झुकाव भी स्वाभाविक रूप से बढ़ेगा।