
सरायकेला: एशिया के सबसे बड़े गज परियोजना के नाम से विख्यात दलमा वाइल्ड लाइफ सेंचुरी में वन एवं पर्यावरण विभाग आगामी दिनों में हाथियों की वार्षिक जनगणना यानी एलिफेंट सेंसेस की तैयारी में जुट गया है। कुल 193.22 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैली इस सेंचुरी में ट्रैक और वाटर हॉल के माध्यम से जंगली हाथियों की संख्या का आंकलन किया जाता है।
एलिफेंट सेंसेस की प्रक्रिया क्या है?
इस प्रक्रिया में पहले दिन ट्रैक सेंसेस किया जाता है, जबकि दो दिन वाटर हॉल के जरिए हाथियों की संख्या की पुष्टि की जाती है। जल स्रोतों के आसपास बड़े पेड़ों पर मचान बनाकर हाथियों की गणना की जाती है। आश्रयणी क्षेत्र में कुल 44 से 65 छोटे-बड़े झरने, तालाब और बांध हैं, जैसे बड़का बांध, माझला बांध, बिजली घाटी, मकड़जल, आमडाढ़ी आदि, जहां विभागीय कर्मचारी सतत नजर रखे रहते हैं।
दलमा में हाथियों की घटती संख्या और वन्य जीवों की स्थिति
हालांकि सेंचुरी नक्सल प्रभावित क्षेत्र है, लेकिन वर्ष 2012 में यहां 65 हाथियों का झुंड देखा गया था। पिछले पांच-सात वर्षों में हाथियों की संख्या में कमी आई है और अब केवल पड़ाडीह, टेंगाडीह, खोकरो बिट जैसे सीमित इलाकों में एक-दो हाथी देखे जाते हैं। साथ ही जंगली सियार, मौर, इंडियन ईगल, लोमड़ी, लाल गिलहरी, बंदर जैसे वन्य जीव अभी भी देखे जाते हैं, पर कई महत्वपूर्ण प्रजातियां जैसे अजगर, ब्लैक कोबरा, भालू, लकड़बग्घा, हाइना, रॉयल बंगाल टाइगर आदि विलुप्ति के कगार पर हैं।
पर्यावरणीय संकट : पेड़ों और फलों की कमी
दलमा सेंचुरी में अब फलदार पेड़ और पौधे लगभग खत्म हो चुके हैं, जिन पर पहले पक्षी निर्भर थे। पूर्व में जल स्रोतों के पास पक्षियों की मधुर आवाज से वातावरण गुंजायमान रहता था, लेकिन अब पक्षी पलायन कर चुके हैं। पेड़ों जैसे डका, पाईकड़, गलगल, मुर्गा, बांस, सातसौ, केंदू आदि का प्राकृतिक संरक्षण भी कमजोर पड़ गया है। इससे हाथियों का भोजन भी सीमित हो गया है। पहले हराभरा जंगल इतना घना था कि सूर्य की रोशनी भी जमीन तक नहीं पहुंचती थी, लेकिन अब वह प्राकृतिक समृद्धि धीरे-धीरे घट रही है।
पर्यटन विकास और वन्य जीव संरक्षण में द्वंद्व
वन एवं पर्यावरण विभाग ने सेंचुरी में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए गेस्ट हाउस और रोपवे जैसी सुविधाएं प्रदान की हैं, जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को लाभ मिलता है। लेकिन वन्य जीवों के विचरण क्षेत्र सिकुड़ रहे हैं और वे पलायन करने लगे हैं। पर्यावरण संरक्षण और पर्यटन के बीच संतुलन बनाए रखना चुनौतीपूर्ण हो गया है।
वन विभाग की भूमिका पर सवाल
वन विभाग द्वारा संरक्षण के लिए करोड़ों रुपये खर्च किए जा रहे हैं, लेकिन वन्य जीवों की पलायन और पर्यावरणीय क्षरण की समस्या जस की तस बनी हुई है।निशाचर वन्य जीवों पर उपयुक्त अध्ययन और संरक्षण कार्य अभी तक क्यों नहीं हुआ, यह एक बड़ा सवाल है।
क्या दलमा सेंचुरी का विलुप्त होना तय है?
दलमा सेंचुरी कभी रॉयल बंगाल टाइगर रिजर्व के नाम से भी जाना जाता था। यहां बड़े-बड़े हाथी प्रजनन और पालन के लिए आते थे। अब स्थिति यह है कि सेंचुरी में जंगली हाथियों की संख्या घट रही है, जंगल कटान बढ़ रहा है, और प्राकृतिक संसाधन खत्म हो रहे हैं। यह चिंताजनक संकेत है कि अगर सतत संरक्षण नहीं हुआ, तो दलमा सेंचुरी वन्य जीवों की सांस्कृतिक और जैव विविधता का केंद्र खो सकता है।
सवाल ये है कि क्या हम समय रहते इस संकट से बाहर आ पाएंगे?
वन्य जीवों के संरक्षण, पर्यावरण की सुरक्षा और स्थानीय लोगों के हितों के बीच तालमेल बनाना अब और भी आवश्यक हो गया है। क्या वन विभाग और सरकार मिलकर इस संकट का समाधान निकाल पाएंगे? यह आने वाला समय बताएगा।
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