
आरबीआई द्वारा दी गई दलील से सहमत है कोर्ट
नई दिल्लीः
सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (एनसीडीआरसी) के 16 साल पुराने एक फैसले को खारिज कर दिया है, इसके बाद बैंक ग्राहकों से क्रेडिट कार्ड बकाया पर 30 प्रतिशत से अधिक ब्याज वसूल सकेंगे। उल्लेखनीय है कि आयोग ने अपने फैसले कहा था कि अत्यधिक ब्याज दर वसूलना अनुचित है। वहीं वन्यायमूर्ति बेला एम त्रिवेदी और न्यायमूर्ति सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने कहा कि एनसीडीआरसी की यह टिप्पणी कि 30 प्रतिशत प्रति वर्ष से अधिक ब्याज दर एक अनुचित है, “अवैध” है और भारतीय रिजर्व बैंक की स्पष्ट व सुस्पष्ट शक्तियों में हस्तक्षेप है। अदालत ने कहा कि यह फैसला बैंकिंग विनियमन अधिनियम, 1949 की विधायी मंशा के विपरीत है।
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आरबीआई द्वारा दी गई दलील से सहमत है कोर्ट
अदालत ने कहा कि एनसीडीआरसी को बैंकों और क्रेडिट कार्ड धारकों के बीच हुए अनुबंध की शर्तों को पुनः लिखने का कोई अधिकार नहीं है, जिस पर दोनों पक्षों ने आपसी सहमति व्यक्त की थी। पीठ ने 20 दिसंबर के अपने फैसले में कहा कि हम भारतीय रिजर्व बैंक की ओर से दी गई दलीलों से सहमत हैं कि वर्तमान मामले के तथ्यों और परिस्थितियों को देखते हुए आरबीआई को किसी बैंक के खिलाफ कार्रवाई करने का निर्देश देने का सवाल ही नहीं उठता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग को अनुचित अनुबंधों को रद्द करने का पूरा अधिकार है, जो प्रभावी भी हैं, लेकिन बैंकों की ओर से ली जाने वाली ब्याज दर, जो वित्तीय विवेक और आरबीआई के निर्देशों के आधार पर निर्धारित की जाती है, और समय-समय पर क्रेडिट कार्ड धारकों को सूचित की जाती है।जिसे अनुचित करार नहीं दिया जा सकता है।
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बैंक क्रेडिट कार्ड धारकों को देती है पूरी जानकारी
पीठ ने कहा कि बैंक द्वारा क्रेडिट कार्ड धारकों को विधिवत जानकारी दी जाती है और उन्हें समय पर भुगतान करने तथा देरी पर जुर्माना लगाने सहित उनके विशेषाधिकारों और दायित्वों के बारे में जागरूक किया जाता है।” सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि क्रेडिट कार्ड सुविधा का लाभ उठाते समय, ग्राहकों को ब्याज दर सहित सबसे महत्वपूर्ण नियमों और शर्तों के बारे में अवगत कराया गया था और वे संबंधित बैंकों की ओर से जारी शर्तों का पालन करने के लिए सहमत हुए थे। ऐसी परिस्थिति में बैंक को अधिकतम ब्याज दर वसूलने का पूरा अधिकार है।