
नई दिल्ली : जी-7 यानी ‘ग्रुप ऑफ सेवन’, दुनिया की सात प्रमुख विकसित अर्थव्यवस्थाओं—अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, जापान, इटली और कनाडा—का समूह है। इसका उद्देश्य वैश्विक अर्थव्यवस्था, भू-राजनीति, जलवायु परिवर्तन और तकनीकी संक्रमण जैसे मुद्दों पर सहयोग करना है। यह समूह वैश्विक जीडीपी का लगभग 28.43 प्रतिशत हिस्सा साझा करता है। वर्ष 2000 में इसकी हिस्सेदारी 40 प्रतिशत थी, जो अब घट चुकी है। भारत इस समूह का सदस्य नहीं है, लेकिन वैश्विक प्रभाव और आर्थिक वृद्धि के कारण उसे अक्सर आमंत्रित किया जाता रहा है।
जी-7 और जी-20 में क्या है अंतर?
जी-7 जहां सिर्फ सात देशों का गठबंधन है, वहीं जी-20 में भारत, चीन, ब्राजील, रूस, सऊदी अरब समेत 20 बड़े अर्थव्यवस्थाएं शामिल हैं। जी-7 का फोकस राजनीतिक और रणनीतिक मुद्दों पर होता है, जबकि जी-20 का ध्यान वैश्विक आर्थिक स्थिरता और वित्तीय सुधारों पर होता है। भारत ने वर्ष 2022-23 में जी-20 की अध्यक्षता की थी, और वर्तमान में इसकी बागडोर दक्षिण अफ्रीका के पास है।
जी-7 का इतिहास और प्रभाव
इस समूह की स्थापना 1975 में अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी, इटली और जापान ने की थी। 1976 में कनाडा और 1998 में रूस शामिल हुआ, लेकिन 2014 में क्राइमिया विवाद के बाद रूस को निष्कासित कर दिया गया। जी-7 की कोई कानूनी हैसियत या स्थायी सचिवालय नहीं है। यह एक मंच है जहां सदस्य देश वैश्विक विषयों पर संवाद करते हैं। इस मंच ने मलेरिया, एड्स के खिलाफ वैश्विक फंड बनाने, डिजिटल टैक्स सुधार, और जलवायु परिवर्तन जैसे विषयों पर वैश्विक नीतियों को प्रभावित किया है।
इस वर्ष के एजेंडे में क्या है खास?
2025 के शिखर सम्मेलन में वैश्विक शांति, आर्थिक स्थिरता, डिजिटल परिवर्तन, और जलवायु संकट प्रमुख मुद्दे होंगे। यह सम्मेलन जी-7 की 50वीं वर्षगांठ के रूप में भी देखा जा रहा है, जिससे इसकी रणनीतिक अहमियत और बढ़ जाती है।
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