
जमशेदपुर: अधिवक्ता कुलविंदर सिंह ने केंद्र सरकार के 2025-2026 के प्रस्तावित बजट को सपनों का सौदागर बताते हुए इसे देश की जनता के साथ मजाक करार दिया. उनका कहना है कि भारत में औसत आय 1 लाख 80 हजार रुपये है. आयकर छूट को 3 लाख से बढ़ाकर 12 लाख करना एक बड़ा मजाक है. इसी तरह, स्टैंडर्ड डिडक्शन को 50,000 से बढ़ाकर 75,000 करना जख्म पर मिर्च छिड़कने जैसा है.
बढ़ती मुद्रास्फीति का संकट
सरकार ने 12 लाख रुपये तक आयकर छूट का प्रावधान किया है, लेकिन इससे कर्मचारियों को वास्तविकता का सामना करना पड़ेगा. बढ़ती मुद्रास्फीति के कारण रुपये के मूल्य में लगातार गिरावट हो रही है, जिससे कर्मचारियों का आर्थिक लाभ केवल कागजों पर रहेगा. आयकर छूट पर यदि खरीदारी बढ़ती है, तो इससे देश में महंगाई का बढ़ना तय है. आवश्यक वस्तुएं भी आम लोगों की पहुंच से बाहर हो जाएंगी.
कामकाजी जनसंख्या की अनदेखी
देश में कार्यरत बल लगभग 55 करोड़ है, जिनमें से 4.5 करोड़ लोग सरकारी, आईटी, बहुराष्ट्रीय कंपनियों और बड़े निर्माण उद्योगों में कार्यरत हैं. यदि सरकार आयकर में छूट देती है, तो इसका लाभ इन्हीं लोगों को मिलेगा, जबकि लगभग 51 करोड़ लोगों के साथ नाइंसाफी होगी. यदि सरकार वास्तव में इन 51 करोड़ लोगों का भला चाहती है, तो उसे ईएसआई का स्लैब 21 हजार से बढ़ाकर 50 हजार करना चाहिए था.
गुजरात की औसत आय
गुजरात, जो देश के सबसे विकसित प्रांतों में से एक है, वहां की मासिक औसत आय बिहार से भी कम, लगभग 19 हजार रुपये है. यह स्थिति दर्शाती है कि विकास के दावे कितने सच्चे हैं. यह बजट घाटे का है, जिसके लिए सरकार को बाह्य और आंतरिक स्रोतों से कर्ज लेना पड़ेगा, जिसका बोझ भविष्य में जनता पर पड़ना तय है. कृषि क्षेत्र में सबसे ज्यादा रोजगार है, लेकिन यहां पर सरकार की प्रस्तावित योजना का लाभ केवल 100 जिलों को मिलेगा, जबकि बाकी 600 जिलों की अनदेखी की जाएगी.
शहरी मध्यम वर्ग पर ध्यान
सरकार ने केवल शहरी मध्यम युवा वर्ग पर ध्यान केंद्रित किया है, और उन्हें ध्यान में रखते हुए इलेक्ट्रॉनिक एवं इलेक्ट्रिक वस्तुओं पर कर में कमी की है. सरकार ने वकीलों के हित में कोई विशेष अनुदान की राशि प्रस्तावित नहीं की है, जबकि वकील समुदाय एडवोकेट वेलफेयर फंड के लिए लगातार दबाव बना रहा है.
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