
सरायकेला: ‘धरती आबा जनभागीदारी अभियान’ के अंतर्गत महिलाओं के यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध एवं प्रतितोष) अधिनियम, 2013 पर एक महत्वपूर्ण जिला स्तरीय कार्यशाला का आयोजन समाहरणालय स्थित झारनेट सभागार में किया गया. कार्यशाला का उद्देश्य था — कार्यस्थलों को अधिक सुरक्षित, समानतामूलक एवं संवेदनशील बनाना, साथ ही संबंधित अधिकारियों को POSH अधिनियम की जानकारी और अनुपालन के प्रति प्रशिक्षित करना.
कार्यशाला का संचालन डॉ. सुनीता ठाकुर और शालिनी शर्मा (संगठन : जागोरी, नई दिल्ली) द्वारा किया गया. दोनों विशेषज्ञों ने गहन कानूनी और व्यवहारिक पहलुओं को सहज व प्रभावी ढंग से प्रस्तुत किया.
प्रमुख विषयों पर हुई गंभीर चर्चा
कार्यशाला में जिन विषयों पर विशेष रूप से चर्चा हुई, वे थे:
लिंग आधारित हिंसा की संरचनात्मक समझ और कानूनी परिप्रेक्ष्य
POSH अधिनियम, 2013 का विस्तृत विश्लेषण व वास्तविक कार्यान्वयन की चुनौतियां
आंतरिक शिकायत समिति (ICC) एवं स्थानीय समिति (LC) की भूमिका और कार्यप्रणाली
केस स्टडीज़ के माध्यम से कानूनी अनुपालन की सामाजिक-सांस्कृतिक व्याख्या
अनौपचारिक कार्यबल में यौन उत्पीड़न से निपटने हेतु व्यावहारिक समाधान
चर्चा से निकले महत्वपूर्ण निष्कर्ष
केवल अधिनियम की जानकारी पर्याप्त नहीं है, बल्कि सोच और दृष्टिकोण में परिवर्तन ज़रूरी है.
कार्यस्थलों की कार्य संस्कृति में लैंगिक संवेदनशीलता को गहराई से शामिल किया जाना चाहिए.
सभी सार्वजनिक पदाधिकारी अपने संवैधानिक और नैतिक दायित्वों के प्रति सजग रहें, यही समय की मांग है.
सहयोग, समन्वय और भविष्य की दिशा
विभागों के बीच बेहतर समन्वय और पारस्परिक जवाबदेही की भावना विकसित हुई.
सभी संस्थानों में आंतरिक शिकायत समितियों (ICC) को सशक्त व सक्रिय बनाने की प्रतिबद्धता जताई गई.
SMS प्रणाली के माध्यम से POSH अधिनियम के अनुपालन में तकनीकी सहयोग की प्रक्रिया शुरू की गई.
सतत संवाद, नीति निर्माण सहयोग एवं सामाजिक दृष्टिकोण में बदलाव की रूपरेखा तैयार की गई.
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