भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने मार्कंण्डेय को दिया था अमरत्व का वरदान

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मानगो वसुन्धरा एस्टेट में शिवकथा ज्ञान यज्ञ का छठा दिन- मंगलवार

जमशेदपुरः मानगो एनएच 33 स्थित वसुन्धरा एस्टेट में चल रहे श्री शिवकथा ज्ञान यज्ञ के छठवें दिन मंगलवार को कथा वाचक स्वामी वृजनंदन शास्त्री महाराज ने मार्कंण्डेय जी को मृत्यु रहित अमृत्व कर प्राप्ति और ओम्कारेश्वर विश्वनाथ महाकाल प्रसंग की कथा का विस्तार से वर्णन किया. महाराज ने कहा कि महामृत्युंजय मंत्र की रचना करने वाले मार्कंण्डेय की भक्ति से प्रसन्न होकर शिव ने उन्हें अमरता का वरदान दिया. यह सुनिश्चित किया कि वे कभी बूढ़े नहीं होंगे, सदाचारी बने रहेंगे और दुनिया के अंत तक प्रसिद्ध रहेंगे. आज तक, मार्कंण्डेय उन्हें अमर व्यक्तियों में से एक माना जाता है, जो अपनी योगिक शक्तियों के कारण युवा और संत जैसे दिखने के लिए जाने जाते हैं. महाराज ने बताया कि शिवजी ने मार्कंण्डेय से कहा कि अब से जो भी भक्त महामृत्युंजय मंत्र का जाप करेगा, उसके सभी कष्ट दूर होंगे और वह असमय मृत्यु के भय से भी बच जाएगा. महामृत्युंजय मंत्र का सरल अर्थ यह है कि हम त्रिनेत्र भगवान शिव का मन से स्मरण करते हैं। आप हमारे जीवन की मधुरता को पोषित और पुष्ट करते हैं. जीवन और मृत्यु के बंधन से मुक्त होकर अमृत की ओर अग्रसर हों.

 

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ओंकारेश्वर नगरी में प्राकृतिक शिवलिंगः- ओम्कारेश्वर विश्वनाथ महाकाल प्रसंग की कथा का वर्णन करते हुए आगे कहा कि भगवान के महान भक्त अम्बरीष और मुचुकुन्द के पिता सूर्यवंशी राजा मान्धाता ने इस स्थान पर कठोर तपस्या करके भगवान शंकर को प्रसन्न किया था. उस महान पुरुष मान्धाता के नाम पर ही इस पर्वत का नाम मान्धाता पर्वत हो गया। ओंकारेश्वर लिंग किसी मनुष्य के द्वारा गढ़ा, तराशा या बनाया हुआ नहीं है, बल्कि यह प्राकृतिक शिवलिंग है. महाराज ने बताया कि लंबे समय तक ओम्कारेश्वर भील राजाओं के शासन का क्षेत्र रहा। देवी अहिल्याबाई होलकर की ओर से यहाँ नित्य मृत्तिका के 18 सहस्र शिवलिंग तैयार कर उनका पूजन करने के पश्चात उन्हें नर्मदा में विसर्जित कर दिया जाता है। ओंकारेश्वर नगरी का मूल नाम मान्धाता है.

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महाराज ने अपनी सुमधुर वाणी से भगवान शिव की महिमा का गुणागान किया. कहा कि स्वार्थ छोड़कर निःस्वार्थ भाव से जल, तन और धन का दान करना चाहिए। भगवान शिव की पूजा करने वाला समस्त पापों से मुक्त हो जाता है और संपूर्ण अभिष्टो को प्राप्त कर लेता है. इसमें संशय नहीं है. परमानंद उसे कहते हैं, जिसके बाद किसी भी आनंद की अनुभूति व्यक्ति को नहीं हो. आनंद सभी दे सकते है, लेकिन परमानंद भगवान शिव ही दे सकते हैं. शिव के व्रत रखने से दुखों का नाश होता है. मोक्ष भी कोई भी देवता नहीं दे सकते, लेकिन भगवान शिव मोक्ष भी दे सकते है. शिव का ज्ञान होने पर ही शिव ज्ञान की प्राप्ति होगी तभी मुक्ति की प्राप्ति हो सकती है. आज के यजमान किरण-उमाशंकर शर्मा थे. महाराज जी सातवें दिन बुधवार को शिवजी द्धारा त्रिपुर वघ, तारकासुर वध कथा, त्रिपुरारी, त्रिशुल, त्रिपुंड एवं कार्तिकेय चरित्र कथा की महिमा का प्रसंग सुनायेंगे. हवन एवं भंडारा के साथ कथा का विश्राम बुधवार एक जनवरी को होगा.

 

 


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