
जमशेदपुर: सांसद विद्युत बरण महतो ने सोमवार को संसद में नियम 377 के अंतर्गत झारखंड राज्य में विस्थापन एवं पुनर्वास का मामला उठाया. उन्होंने कहा कि झारखंड के औद्योगिक क्षेत्र में भूमि अधिग्रहण से प्रभावित परिवारों के पुनर्वास और उनके अधिकारों की रक्षा पर कुछ शब्द कहना चाहते हैं.
औद्योगिक विकास की कीमत
सांसद महतो ने बताया कि झारखंड की खनिज संपदा और औद्योगिक विकास ने राज्य को एक प्रमुख आर्थिक केंद्र बना दिया है. लेकिन इस विकास के चलते किसान और आदिवासी भाई-बहनों को अपनी ज़मीन खोने का कष्ट उठाना पड़ रहा है, जिससे उनके जीवन में अत्यधिक कष्ट और असमंजस उत्पन्न हो रहा है.
भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया
उन्होंने कहा कि बड़े डैम, बांध, नहर, खनन कार्य, राष्ट्रीय राजमार्ग और रेलवे सहित विभिन्न राष्ट्रीय हित के कार्यों के लिए भूमि का अधिग्रहण आवश्यक है. लेकिन भूमि अधिग्रहण के साथ-साथ स्थानीय समुदायों को उचित मुआवजा और पुनर्वास की व्यवस्था करना भी अत्यंत महत्वपूर्ण है.
परियोजनाओं में कमी
सांसद महतो ने दुख व्यक्त करते हुए कहा कि कई परियोजनाओं में प्रभावित परिवारों को न तो पर्याप्त मुआवजा मिला है और न ही उनकी नई जीवनशैली के लिए उपयुक्त योजनाएं बनाई गई हैं. उन्होंने बोकारो धनबाद से लेकर संपूर्ण कोयलांचल में भूमि के अधिग्रहण और चांडिल डैम से सीतारामपुर डैम तक बड़ी संख्या में लोगों के विस्थापन का उल्लेख किया.
नौकरी और मुआवजे का अभाव
सांसद महतो ने कहा कि विस्थापित लोगों को न तो रोजगार मिला है और न ही उन्हें मुआवजे की पर्याप्त राशि मिली है. आज भी ये लोग दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं.
समग्र पुनर्वास नीति की आवश्यकता
उन्होंने माननीय मंत्री से निवेदन किया कि प्रभावित परिवारों के लिए एक समग्र और संरचित पुनर्वास नीति बनाई जाए. पुनर्वास केवल जमीन के बदले एक घर देने तक सीमित नहीं होना चाहिए. इसके साथ ही उन्हें शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, और अन्य बुनियादी सेवाओं की भी गारंटी मिलनी चाहिए, ताकि वे अपने पुराने जीवन को खोने के बाद एक नई शुरुआत कर सकें.
राष्ट्रीय स्तर पर नीति का पुनर्निर्धारण
सांसद महतो ने यह भी कहा कि राष्ट्रीय स्तर पर अधिग्रहण, विस्थापन एवं पुनर्वास-रोजगार की नीति को पुनर्परिभाषित करने की आवश्यकता है. उन्होंने इस संबंध में एक समग्र नीति बनाने और इन नीतियों के प्रभावी कार्यान्वन की सुनिश्चितता पर जोर दिया.
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