
गुवा: ससंगदा प्रक्षेत्र के वन क्षेत्र पदाधिकारी शंकर भगत ने हाल ही में अपने एक साक्षात्कार में पर्यावरण के संकट को लेकर गहरी चिंता व्यक्त की. उन्होंने बताया कि एशिया के प्रसिद्ध सारंडा जंगल में इस समय अत्यधिक गर्मी पड़ रही है, जिससे नदियाँ, प्राकृतिक झरने और अन्य जल स्त्रोत सूखने लगे हैं. सारंडा की जीवन रेखा कही जाने वाली कारो, कोयना और सरोखा नदियाँ अब नालों और पथरीले रास्तों में बदल चुकी हैं. इन नदियों का पानी अत्यधिक गिरने से न केवल जलस्तर घटा है, बल्कि इनके अंदर की मछलियाँ भी मरने लगी हैं.
प्राकृतिक संसाधनों का शोषण और प्रदूषण
भगत ने यह भी बताया कि खादानों में काम करने वाले लोग नदी की मछलियों को मारने के लिए विषाक्त पदार्थों का इस्तेमाल करते थे. इससे नदी के पर्यावरण पर गहरा असर पड़ा है. नदी की गहराई खादानों से आई मिट्टी और पत्थरों से लगभग दो मीटर तक भर चुकी है. इससे पानी का ठहराव नहीं हो पा रहा और जलस्तर तेजी से घट रहा है. बढ़ते तापमान और घटते जलस्तर ने यहां रहने वाले लोगों और वन्य प्राणियों के अस्तित्व को खतरे में डाल दिया है.
पौधारोपण और पर्यावरण बचाने की अपील
इस संकट से बचने के लिए भगत ने लोगों से अपील की कि वे पौधारोपण के कार्य में बढ़-चढ़ कर भाग लें. उन्होंने कहा कि वृक्ष जीवन देने वाले होते हैं और इन्हीं के कारण पृथ्वी पर हरियाली और प्राकृतिक सुंदरता बनी रहती है. वृक्षों के बिना न केवल हमारी जीवनधारा प्रभावित होगी, बल्कि पर्यावरण के लिए भी यह एक गंभीर संकट होगा.
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