
गंगटोक: सिक्किम के उत्तरी क्षेत्र में रविवार 1 जून की शाम भयंकर भूस्खलन ने तबाही मचा दी. चट्टन क्षेत्र में स्थित एक आर्मी कैंप अचानक आए मलबे की चपेट में आ गया. इस घटना में तीन लोगों की जान चली गई, जिनमें कुछ सेना के जवान भी शामिल हैं. मृतकों की अब तक शिनाख्त नहीं हो सकी है.
बताया जा रहा है कि लगभग नौ जवान अब भी लापता हैं. उनकी तलाश के लिए व्यापक पैमाने पर राहत और बचाव अभियान जारी है. आसपास के घरों को भी भारी नुकसान पहुँचा है.
भारी बारिश और भूस्खलन के चलते लोचन और लाचुंग क्षेत्रों में स्थिति बेहद खराब है. मंगन जिले के एसपी सोनम देचू भूटिया के अनुसार, लाचेन में लगभग 115 और लाचुंग में 1,350 पर्यटक फंसे हुए हैं. इन दोनों इलाकों की ओर जाने वाले रास्ते भूस्खलन के कारण अवरुद्ध हैं.
हालांकि अधिकारियों ने बताया कि लाचुंग के लिए सड़क संपर्क बहाल कर लिया गया है. सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) ने तेजी से मलबा हटाकर सड़कों को पुनः तैयार किया है. फिडांग में सस्पेंशन ब्रिज के पास आई दरारों को भी भरा गया है ताकि पर्यटकों को चुंगथांग, शिपज्ञेरे और डिकचू होते हुए सुरक्षित निकाला जा सके.
30 मई को फटा था बादल, पर्यटक स्थल प्रभावित
बीआरओ के मुताबिक, 30 मई को उत्तरी सिक्किम में बादल फटने की घटना ने हालात को और भी भयावह बना दिया. उस दिन क्षेत्र में 130 मिमी से अधिक बारिश रिकॉर्ड की गई. इसका असर लाचेन, लाचुंग, गुरुदोंग्मर, वैली ऑफ फ्लावर्स और जीरो प्वाइंट जैसे प्रमुख पर्यटन स्थलों तक पहुँचा.
इस आपदा से डिकु-सिनकलंग-शिपगियर रोड, चुंगथांग-लेशेन-ज़ेमा रोड और चुंगथांग-लाचुंग रोड को काफी नुकसान पहुँचा. कई पुल क्षतिग्रस्त हो गए, सड़कें दरक गईं और कई जगहों पर मलबे का अंबार लग गया.
क्या यह प्राकृतिक आपदा थी या पूर्व चेतावनी की अनदेखी?
इस तरह की घटनाएं न केवल सवाल उठाती हैं कि भूस्खलन और बादल फटने जैसी प्राकृतिक आपदाओं के प्रति हमारी तैयारी कितनी सुदृढ़ है, बल्कि यह भी कि क्या उच्च हिमालयी क्षेत्रों में पर्यटकों की सुरक्षा के पर्याप्त उपाय हैं? क्या आने वाले दिनों में सिक्किम फिर मुस्कुराएगा, या प्रकृति की मार और बढ़ेगी?
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