
जादूगोड़ा: यूनाइटेड किंगडम ऑफ इंडिया लिमिटेड (यूसिल) के जादूगोड़ा स्थित अस्पताल में बीते 15 दिनों से दवाइयों की भारी कमी देखी जा रही है. अस्पताल परिसर में सन्नाटा पसरा है और मरीज दवाओं के अभाव में निराश होकर लौट रहे हैं. स्थिति इतनी गंभीर हो चुकी है कि शुगर और रक्तचाप जैसी जीवन रक्षक दवाइयां भी उपलब्ध नहीं हैं. अस्पताल प्रबंधन के अनुसार, दवा आपूर्ति से जुड़ा टेंडर बीते पखवाड़े में समाप्त हो चुका है. नई आपूर्ति हेतु दायर फाइल को 20 मई को यूसिल बोर्ड के समक्ष प्रस्तुत किया गया, लेकिन दस्तावेजों की कमी के कारण उसे होल्ड पर रख दिया गया. बताया गया कि कंपनी ने दो दिन पूर्व आवश्यक रिपोर्ट बोर्ड को भेज दी है, लेकिन औपचारिक मंजूरी आने में अब भी 20–25 दिन लग सकते हैं.
मरीजों की संख्या में भारी गिरावट
दवाइयों के अभाव का असर ओपीडी पर भी पड़ा है. जहां पहले प्रतिदिन 200 मरीज आते थे, अब गिनती इक्का-दुक्का रह गई है. प्रबंधन की मानें तो अस्पताल में डॉक्टर तो मौजूद हैं, पर दवाइयों की अनुपलब्धता के कारण वे केवल बैठ कर वेतन ले रहे हैं. यूसिल के भूतपूर्व कर्मचारी इस संकट से सबसे अधिक प्रभावित हो रहे हैं. उन्हें न तो अस्पताल से दवाइयां मिल रही हैं और न ही विकल्प उपलब्ध है. वर्तमान कर्मचारी दवाएं खरीद कर बिल प्रस्तुत कर रहे हैं, जिसका भुगतान भी 4-5 महीने बाद होता है. वहीं, पूर्व कर्मचारी बिना दवा के लौटने को मजबूर हैं.
वैकल्पिक व्यवस्था नाकाफी, जिम्मेदारों की चुप्पी
फिलहाल कंपनी अपने स्तर से कुछ सीमित दवाइयां मरीजों को दे रही है, पर वह नाकाफी साबित हो रही हैं. पूरे अस्पताल परिसर में उदासी और नाराजगी का माहौल है. अस्पताल कर्मी भी खाली बैठकर बातचीत में व्यस्त नजर आते हैं. पूर्व कर्मचारियों ने नाराजगी जताते हुए कहा है कि यूसिल जहां बाहर की एम्बुलेंस बाँटकर वाहवाही लूट रही है, वहीं अपने अस्पताल में दवा जैसी बुनियादी जरूरत भी पूरी नहीं कर पा रही.
उनका सवाल है कि जब कंपनी की प्राथमिक ज़िम्मेदारी अपने कर्मचारियों की स्वास्थ्य सुरक्षा है, तो इस हालात में समाजसेवा का क्या औचित्य?
अब देखना यह है कि टेंडर प्रक्रिया में लापरवाही और प्रबंधन की निष्क्रियता पर कब तक विराम लगता है. जिस संस्था की कभी स्वास्थ्य सेवाओं में सराहना होती थी, वही आज अपने पूर्व कर्मियों को दवा के लिए दर-दर भटकने को मजबूर कर रही है.
स्पष्ट है कि यूसिल की प्रतिष्ठा को सबसे अधिक नुकसान उसकी ही उदासीन नीतियों से हो रहा है.
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