Emergency : आपातकाल लोकतंत्र की हत्या का काला अध्याय – अमरप्रीत सिंह काले

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भाजपा नेता ने कहा आपातकाल के दौरान संविधान की मूल भावना, व्यक्तिगत स्वतंत्रता और प्रेस की आज़ादी सभी को सत्ता की ताक़त तले कुचल डाला गया था 

जमशेदपुर : 25 जून 1975 यह तारीख भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में एक काले अध्याय के रूप में दर्ज है। इसी दिन देश की तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने अपनी सत्ता की कुर्सी बचाने के लिए देश पर आपातकाल थोप दिया था। संविधान की मूल भावना, व्यक्तिगत स्वतंत्रता और प्रेस की आज़ादी सभी को सत्ता की ताक़त के जूतों तले कुचल डाला गया था। उक्त बातें भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता अमरप्रीत सिंह काले ने कही। उन्होंने कहा कि बुधवार को भारतीय जनता पार्टी इस दिन को ‘काला दिवस’ के रूप में मनाकर न केवल उन अंधेरे दिनों की याद दिला रही है, बल्कि देशवासियों को चेताने का कार्य भी कर रही है कि लोकतंत्र की रक्षा हर नागरिक का धर्म है।

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आपातकाल के दौरान लाखों नागरिकों को बिना किसी आरोप के जेलों में डाला गया , प्रेस की आज़ादी को कुचल दिया गया , न्यायपालिका पर राजनीतिक दबाव बनाया गया और जबरन नसबंदी और दमनकारी नीतियों के ज़रिए नागरिकों के अधिकारों का हनन किया गया।

यह दिन हमें याद दिलाता है कि जब सत्ता व्यक्तिगत स्वार्थ के अधीन हो जाती है, तब संविधान और लोकतंत्र दोनों ही खतरे में पड़ जाते हैं। भाजपा यह स्पष्ट करना चाहती है कि आपातकाल जैसे तानाशाही कदम लोकतंत्र के लिए घातक हैं। लोकतंत्र में असहमति को जगह मिलनी चाहिए, न कि उसे जेल की सलाखों के पीछे धकेल दिया जाए।

आज जब भारत अपने लोकतांत्रिक मूल्यों को और भी मज़बूत कर रहा है, तब यह आवश्यक है कि हम उन दिनों को याद रखें जब संविधान को ताक पर रख दिया गया था। उन्होंने कहा कि हम यह भी पूछना चाहते हैं कि क्या सत्ता बचाने के लिए पूरे देश को ही जेल बना देना यह लोकतंत्र की आत्मा के साथ विश्वासघात नहीं था ?

भारतीय जनता पार्टी के रूप में हमारा यह संकल्प है कि हम देश के लोकतंत्र की रक्षा के लिए सदैव संघर्षरत रहेंगे। हम उस पीढ़ी को भी नमन करते हैं जिन्होंने आपातकाल के विरुद्ध आवाज़ उठाई, जेलें भरीं और संविधान की रक्षा के लिए बलिदान दिया। यह ‘काला दिवस’ केवल एक विरोध नहीं, एक चेतावनी है, कि यदि हम सतर्क न रहें, तो इतिहास अपने आप को दोहरा सकता है।

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