नई दिल्ली: पितृपक्ष का अंतिम और सबसे महत्वपूर्ण दिन सर्वपितृ अमावस्या माना जाता है। इसे पितरों की कृपा पाने और उनका आशीर्वाद लेने का सबसे खास दिन माना गया है। यह दिन उन सभी पितरों को समर्पित होता है, जिनकी मृत्यु तिथि का पता नहीं है या जिनका श्राद्ध किसी कारणवश नहीं किया जा सका। मान्यता है कि इस दिन किए गए तर्पण, पिंडदान और दान से पितृ प्रसन्न होकर अपने वंशजों को सुख-शांति और समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं।
कब है सर्वपितृ अमावस्या?
इस साल यह तिथि रविवार, 21 सितंबर 2025 को पड़ रही है। आश्विन माह की अमावस्या तिथि का प्रारंभ 21 सितंबर को रात 12:16 बजे होगा और समापन 22 सितंबर को रात 1:23 बजे होगा। पूजा और तर्पण के शुभ मुहूर्त इस प्रकार रहेंगे:
कुतुप मुहूर्त: सुबह 11:50 से दोपहर 12:38 बजे तक
रौहिण मुहूर्त: दोपहर 12:38 से 1:27 बजे तक
अपराह्न काल: दोपहर 1:27 से 3:53 बजे तक
दान की टोकरी की परंपरा
इस दिन एक विशेष परंपरा निभाई जाती है – दान की टोकरी तैयार करना। इस टोकरी में जीवनोपयोगी वस्तुएं जैसे अनाज, तिल, गुड़, वस्त्र, दक्षिणा, और श्राद्ध सामग्री रखी जाती है। इसे किसी ब्राह्मण, मंदिर या ज़रूरतमंद व्यक्ति को अर्पित किया जाता है। धार्मिक मान्यता है कि यह दान पितरों तक पहुंचता है और उनकी आत्मा को तृप्त करता है।
टोकरी में क्या रखें?
चावल, गेहूं और काले तिल – पितृ तृप्ति के लिए आवश्यक
सफेद या पीला वस्त्र (धोती, साड़ी) – पितरों को शांति देने के लिए
लौकी, कद्दू जैसी हरी सब्जियां – पितृदोष दूर करने के लिए
तांबे या पीतल के बर्तन – लक्ष्मी कृपा पाने के लिए
गुड़, खील, मिठाई और दक्षिणा – पूर्ण श्रद्धा का प्रतीक
दान की विधि
सुबह स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनें और शांत मन से पितरों का स्मरण करें।
दक्षिण दिशा की ओर मुख करके जल अर्पित करें।
फिर श्रद्धा भाव से दान की टोकरी किसी ब्राह्मण, गौशाला या ज़रूरतमंद को दें।
ध्यान रहे, दान हमेशा प्रसन्न मन से करें।
पीपल पूजन का महत्व
मान्यता है कि पीपल के पेड़ में पितरों का वास होता है। इसलिए इस दिन इसकी पूजा करना शुभ माना गया है।
पेड़ की सात परिक्रमा करें।
इसके नीचे सरसों के तेल के दीपक में काले तिल डालकर जलाएं।
चाहें तो मंदिर के बाहर पीपल का पौधा भी लगा सकते हैं।
दान से होने वाले लाभ
धार्मिक मान्यता के अनुसार इस दिन किया गया दान पितरों की आत्मा को संतुष्ट करता है और वे अपने वंशजों को आशीर्वाद देते हैं।
परिवार से क्लेश और दरिद्रता दूर होती है.
जीवन में सुख-समृद्धि और संतान सुख बढ़ता है.
मां लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है और घर में अन्न-धन की कमी नहीं होती।
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