
रांची: झारखंड हाई कोर्ट ने झारखंड लोक सेवा आयोग (जेपीएससी) के एक निर्णय को असंवैधानिक करार देते हुए उसे रद्द कर दिया है. इस फैसले में कोर्ट ने एक अनुसूचित जाति (SC) वर्ग के उम्मीदवार को जनरल कैटेगरी में स्थानांतरित कर असफल घोषित किए जाने को संविधान विरोधी बताया है.
आरक्षण अधिकार है, तकनीकी औपचारिकता नहीं
मुख्य न्यायाधीश एम.एस. रामचंद्र राव की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने स्पष्ट किया कि यदि कोई अभ्यर्थी आरक्षित वर्ग में आवेदन करता है और उस वर्ग की कट-ऑफ को पार करता है, तो उसे किसी कॉलम की त्रुटि या तकनीकी आधार पर जनरल श्रेणी में डालना न केवल अनुचित है, बल्कि संविधान में निहित आरक्षण व्यवस्था का उल्लंघन भी है.
कोर्ट की टिप्पणी: आरक्षण असमानता का समाधान है
कोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा कि आरक्षण समाज की ऐतिहासिक असमानताओं को संतुलित करने का एक संवैधानिक प्रयास है. यदि इसे किसी भी रूप में बाधित किया जाए, तो यह संविधान की मूल आत्मा को ठेस पहुँचाने जैसा है.
दीपक कुमार का केस बना मिसाल
इस मामले में अभ्यर्थी दीपक कुमार ने सिविल जज (जूनियर डिवीजन) परीक्षा 2023 में एससी वर्ग के तहत आवेदन किया था और अपेक्षित कट-ऑफ से अधिक अंक भी प्राप्त किए थे. बावजूद इसके, जेपीएससी ने आवेदन पत्र में एक कॉलम अधूरा होने का हवाला देते हुए उन्हें सामान्य वर्ग में स्थानांतरित कर असफल घोषित कर दिया.
कोर्ट का निर्देश: दीपक को घोषित करें सफल
हाई कोर्ट ने इस निर्णय को रद्द करते हुए न केवल दीपक कुमार को सफल घोषित करने का निर्देश दिया, बल्कि जेपीएससी द्वारा भेजे गए उस ई-मेल को भी अमान्य करार दिया, जिसमें उन्हें जनरल कैटेगरी में स्थानांतरित किया गया था.
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