Jhargram: फिर से पाली जा रही लुप्त होती पारंपरिक मछलियां, सूखा तालाब बना पर्यावरण संरक्षण का मॉडल

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झाड़ग्राम: झाड़ग्राम जिले के गोपीबल्लभपुर ब्लॉक नंबर 2 में पुटी, चेंग, पाकल, सिंह और मोरला जैसी पारंपरिक मछलियों को फिर से जीवित करने की एक अभिनव पहल की गई है. ये मछलियाँ जो कभी बंगालियों की थाली का हिस्सा थीं, आज दुर्लभ होती जा रही हैं. इस पहल की शुरुआत ब्लॉक के प्रखंड विकास पदाधिकारी नीलोत्पल चक्रवर्ती के नेतृत्व में की गई. उनके कार्यभार ग्रहण के समय बीडीओ कार्यालय परिसर का तालाब जलकुंभी और जलीय खरपतवारों से ढका हुआ था. इसे पुनर्जीवित कर मछली पालन का विचार वहीं से उपजा. आज यह तालाब न केवल जीवित हो चुका है, बल्कि बत्तख पालन और सब्ज़ी उत्पादन का केंद्र भी बन गया है. लगभग 15 बत्तखें तालाब में विचरण करती हैं. बैंगन, कद्दू, गाजर, कलमी और पुई साग की बगिया तालाब के किनारे लहलहा रही है, जिसे कार्यालय के कर्मचारी खुद उगा रहे हैं.

एक क्विंटल से अधिक मछलियाँ
इस परियोजना में मत्स्य विभाग के विस्तार अधिकारी दीपक सेनापति और कर्मचारी दीपेश डे की महत्वपूर्ण भूमिका रही है. उनके संयुक्त प्रयासों से आज तालाब में एक क्विंटल से अधिक मछलियाँ मौजूद हैं. नियमित देखभाल होती है और जलस्तर कम होने पर पंप की मदद से पानी भी डाला जाता है. इस सफल प्रयोग को देखते हुए पर्यावरण विभाग ने भी कदम बढ़ाया है. कार्यालय से कुछ किलोमीटर दूर बेलियाबेड़ा में एक बड़े तालाब को प्राकृतिक अभयारण्य के रूप में विकसित किया गया है. वहां थानकुनी, लिली, रीड, हीलिंगचा और खगर कलमी जैसे पौधे लगाए गए हैं जो जलीय पर्यावरण के लिए सहायक हैं. बरसात के मौसम में इस तालाब का पानी आसपास की जमीन पर फैलेगा और मछलियाँ स्वाभाविक रूप से अन्य जल स्रोतों में पहुंचेंगी. इस प्रकार यह प्रयास मछलियों के संरक्षण के साथ-साथ उनकी उपलब्धता को भी बढ़ाएगा.

मछली पालन से अधिक है यह प्रयोग
बीडीओ नीलोत्पल चक्रवर्ती कहते हैं, “हमारा उद्देश्य सिर्फ मछली पालन नहीं है, बल्कि यह दिखाना है कि छोटे-छोटे प्रयासों से बड़ा बदलाव संभव है.” उन्होंने यह भी बताया कि अब अन्य लोग भी प्रेरित हो रहे हैं और अपने तालाबों में मछली पालन की दिशा में कदम बढ़ा रहे हैं. विस्तार अधिकारी दीपक सेनापति कहते हैं, “यह परियोजना केवल सरकारी योजना नहीं है, बल्कि यह एक संदेश है– आपका घरेलू तालाब भी जैव विविधता का रक्षक बन सकता है.” यह प्रयास पर्यावरण, आजीविका और सामुदायिक सहभागिता को एक साथ जोड़ रहा है. यह परियोजना संरक्षण से आगे बढ़कर ग्रामीण आजीविका और पर्यावरणीय सामंजस्य का प्रतीक बन गई है. गोपीबल्लभपुर आज मत्स्य पालन के क्षेत्र में एक नया अध्याय लिख रहा है और पूरे राज्य के लिए एक मॉडल बनकर उभर रहा है.

 

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